Monday 31 December 2012

एक इल्तिज़ा


(उसके नाम, जिसकी आँखों में ढेरों सपने थे, जो पूरे ना हो सके, वो जो जीना चाहती थी, पर जी ना सकी, क्योंकि वो एक लड़की थी  )
माँ,
मुझे अब गुडियों से नहीं खेलना
अबकी मेरे लिए भी बन्दूक ले आना
मत भेजना अब मुझे डांस क्लास
अब से मुझे भी कराटे सिखाना
मत कहना की मैं टीचर ही बनू
मुझे तो है फौज में जाना
मत देना अब शर्माने, लजाने की नसीहतें
क्योंकि मैं चाहती हूँ अब आवाज़ उठाना
माँ, मैं हूं तो तेरी बिटिया ही
पर प्लीज मुझे भैया सा ही बनाना
- उपमा सिंह

Saturday 22 December 2012

मत उलझ नादान मुझसे

ज्ञान मुझसे, ध्यान मुझसे
रंक क्या धनवान मुझसे

सुर भी मुझसे, तान मुझसे
जीवन का हर गान मुझसे

मैं सती, सीता भी मैं ही
तेरा हर भगवान मुझसे

मैं ही काली, मैं ही दुर्गा
कौन है बलवान मुझसे

मैं धरा, अम्बर पे भी मैं
किसलिए ये गुमान मुझसे

मेरे बिन तू है ही क्या
तेरी हर पहचान मुझसे

मैं ही जननी, मैं ही भगिनी
फिर भी ये अपमान मुझसे

मैं नहीं तो, तू ना होगा
मत उलझ नादान मुझसे
-उपमा सिंह

Tuesday 4 December 2012

लौट चलें

चलो
हम-तुम
लौट चलें फिर
उसी शहर की, उसी गली में
जहां से चले थे साथ
उसी जगह पर
जहां थामा था, एक-दूजे का हाथ

चलो
खो जाएं फिर
उन्हीं वादियों में
जहां थे, बस खुशियों के रंग
फिर बुनें वो सपने
जिनमें कुछ भी ना हो बेरंग

चलो
फिर चले
इक नई जि़ंदगी सजाने के वास्ते
पर अबकी छोड़ देना
वो मोड़
जहां जुदा हो जाते थे
मेरे-तुम्हारे रास्ते

-उपमा सिंह

Monday 3 December 2012

साथ चलो...


जो बेसबब सी थीं, भुला दें वो हर बात चलो।
उम्र भर न सही, दो कदम तो साथ चलो।

चुप हो तुम भी कब से, चुप से हम भी हैं,
छेड़े कोई खामोश सी बात चलो।

तन्हाइयां भी ये ऊब गईं तन्हेपन से,
अब तो हाथों में लेकर मेरा तुम हाथ चलो।

जहां हो न कोई मेरे न तेरे जैसा,
दूर, कहीं दूर, मेरे हमराज़ चलो।

उम्र भर न सही, दो कदम तो साथ चलो।।

-उपमा सिंह

Friday 23 November 2012

सोचती हूँ...

सोचती हूं
कहूं मैं भी कुछ
बोलूं, बतियाऊ
खोल दूं मन का हर राज़
गाऊं , गुनगुनाऊं, छेड़ दूं, कोई साज़

पर नहीं फूटते बोल
साज़ खामोश से है
सन्नाटा है हर तरफ
हर अल्फाज़ चुप है...

भर देना चाहती हूं यह खालीपन
अंतर्मन का ये सूनापन
खिलखिलाना चाहती हूं
गीत गाना चाहती हूं

पर अधर साथ नहीं देते
गीत सूझते ही नहीं
खामोशी इस तरह है छाई
कि हर एहसास चुप है...

जि़न्दगी मुझे भी करे प्यार
डाले मेरे गले में भी खुशियों के हार
महक उठूं मैं भी
कर दे ऐसा शृंगार
पर वो तो रूठी है मुझसे
दूर कहीं छुपी है मुझसे, खफा ऐसे है
कि अब तो हर सांस चुप है...
 

- उपमा सिंह


फ्लश आउट


मेरी जि़न्दगी की किताब के वो पन्ने
जिन पे लिखा था तुम्हारा नाम
ऊपर से नीचे
दायें से बायें
हर तरफ...

जिनमें जोड़ती थी
हर दिन, हर क्षण, कुछ नया
कुछ हंसना-खिलखिलाना
कुछ रूठना-मनाना
कुछ रोक-टोक, कुछ नोकझोंक...

अब वो पीले पड़ चले थे
कहीं-कहीं तो भूरे भी
जगह-जगह से कटे-फटे
चिथड़े जैसे...

इसलिए नोच डाला मैंने उन्हें
अपने इन्हीं हाथों से
जिनसे सहेजा था कभी
और भरे थे रंग
आज टुकड़े- टुकड़े कर
फ्लश आउट कर दिया
हमेशा के लिए...
- उपमा सिंह