Friday 24 January 2014

बिंदास होती हैं दिल्ली की कुड़ियां : आलिया भट्ट


Alia-Bhatt

उपमा सिंह
'स्टूडेंट ऑफ द इयर' आलिया भट्ट इन दिनों 'हाइवे' के रास्ते सक्सेस की ऊंचाइयां छूने को बेताब हैं। इस फिल्म में दिल्ली गर्ल 'वीरा' का रोल कर रहीं आलिया ने दिल्ली की कुड़ियों से लेकर दिल्ली की गलियों तक के बारे में हमसे ढेर सारी बातें कीं:

दूसरी ही फिल्म और इम्तियाज अली, ए.आर. रहमान जैसे बड़े नामों के साथ काम करने का मौका। सुपरस्टार वाली फीलिंग तो आती होगी!
नहीं, सुपरस्टार जैसा तो फील नहीं करती। हां, मैं अपने को बहुत ही ग्रेटफुट और लकी मानती हूं कि अपनी दूसरी ही फिल्म में इम्तियाज, रहमान सर, अनिल मेहता जैसे लोगों के साथ काम करने को मिला।

'हाइवे' में आप दिल्ली गर्ल बनी हैं। कुछ खास तरह की तैयारी करनी पड़ी इसके लिए?
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हां, इन्फैक्ट मैं अपनी दोनों ही फिल्मों में दिल्ली गर्ल ही बनी हूं। 'शनाया' भी दिल्ली गर्ल ही थी। हालांकि 'वीरा' उससे बहुत अलग है। यह नॉर्मल लड़की है। बहुत अमीर है, लेकिन इसके लिए मैंने ज्यादा कुछ प्रिपेयर नहीं किया, क्योंकि इम्तियाज चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा रियल रहूं। इसी वजह से वीरा की जो जर्नी है, उसमें भी काफी नयापन है। 'शनाया' बहुत स्टाइलिश थी, 'वीरा' का भी अपना स्टाइल है, लेकिन वह बहुत अलग है, जो आपको फिल्म देखने पर पता चलेगा। शायद आपने प्रोमो में देखा हो, 'वीरा' खुद से बात करती है, थोड़ी सी वाइल्ड है, पर आप ये फिल्म में देखेंगे कि वह ऐसी क्यों है!

रियल लाइफ में आप मुंबइया हैं तो दिल्ली की कुड़ियां किस तरह अलग लगती हैं?
बहुत अलग लगी। दिल्ली की कुड़िया बहुत ही बिंदास होती है। उनकी हिंदी तो बहुत ही कूल होती है। एक जो अलग तरह का लिंगो वो यूज करती हैं, कमाल होता है। मैं अपनी नेक्स्ट फिल्म 'हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया' में पंजाबी कुड़ी का रोल कर रही हूं। उसमें मैंने एक डॉयलॉग बोला है- ऐ चल परे हट। वह मुझे बहुत एक्साइटिंग लगा। मुंबई की लड़कियों को थोड़ा रिजर्व, घमंडी माना जाता है, हालांकि वे होती नहीं हैं, लेकिन दिल्ली की लड़कियों में एक अलग ही वियर्ड काइंड एनर्जी होती है।

'स्टूडेंट ऑफ द इयर' की स्टाइलिश 'शनाया' के मुकाबले 'हाइवे' की 'वीरा' बनना कितना चैलेंजिंग रहा?
चैलेंज बहुत था। फिजिकल चैलेंज, इमोशनल चैलेंज। हम बहुत ज्यादा ट्रैवल कर रहे थे, तो मेरे पास वर्कआउट करने के लिए टाइम नहीं होता था। इसलिए मैंने अपनी डायट पर बहुत ध्यान दिया। हेल्थी खा रही थी, बाकी टीम मेंबर्स की तरह मैंने ज्यादा ढाबा खाना नहीं खाया। क्योंकि फिल्म में काफी ऐक्शन भी है और वह भी कोरियोग्राफ्ड ऐक्शन नहीं है। इसलिए इसमें ज्यादा ताकत लगती थी। मेरी बॉडी में लगातार दर्द रहता था। मेरी गर्दन स्टिफ हो गई थी। मुड़ नहीं पा रही थी। लेकिन आखिर में मुझे ये लगता था कि ये सारा दर्द अच्छा है, क्योंकि मैंने अच्छा काम किया।

दिल्ली में फिल्म का शूटिंग एक्सपीरियंस कैसा रहा?
दिल्ली में हमने मांगड़ विलेज में शूटिंग की, जो शायद हरियाणा में आता है और दिल्ली से कुछ घंटे की दूरी पर है। ज्यादातर शूट रात में थे, तो मैं रोज प्लान करती थी कि दिन में चाट खाने जाऊंगी, खान मार्केट जाऊंगी, पर कभी हुआ नहीं। हालांकि मैं फिर वापस दिल्ली आई थी 'टू स्टेट्स' की शूटिंग के लिए। तब हम गए थे हौज खास विलेज और वहां 'येटी' फूड पॉइंट पर खाना खाया, जो वाकई कमाल था।

'हाइवे' से आप सिंगर भी बन गई हैं। ये कैसे हुआ?
मैंने कुछ नहीं किया। यह सब इम्तियाज ने किया। मैं तो खुद को बाथरूम सिंगर ही मानती थी। इम्तियाज ने मुझे सेट पर कुछ गुनगुनाते सुना और बस...। मैंने कभी गाने की फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली। स्टूडियो में भी पहली बार गाया। वैसे आजकल ऐक्टर का सिंगर बनना आम हो गया है! मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगता। अगर किसी ऐक्टर की आवाज उसे सूट करती है और म्यूजिक डायरेक्टर को लगता है कि वह गा सकता है, तो इसमें दिक्कत क्या है!

तो क्या आप अपनी आने वाली फिल्मों में भी गाएंगी?
मुझे पता नहीं कि आगे क्या होने वाला है। लेकिन इतना जरूर है कि मेरा म्यूजिक में इंट्रेस्ट बढ़ गया है और मैं पियानो सीखने जा रही हूं। रहमान सर ने मुझे सजेस्ट किया कि मुझे पियानो सीखना चाहिए। इसलिए मैं इसके लिए थोड़ा टाइम निकालने वाली हूं।

पहली फिल्म के बाद क्या और भी टिपिकल हिरोइन वाले रोल ऑफर हुए? कैसे सिलेक्ट करती हैं फिल्में?
नहीं, बल्कि लोग जैसा सोचते हैं, उसके उलट मुझे वैसा कोई भी रोल ऑफर नहीं हुआ। बल्कि मैंने उन 90 पर्सेंट किरदारों के लिए हां कह दिया, जो मुझे ऑफर हुए।

'हाइवे' का प्रोमो आने के बाद से आपको 'जब वी मेट' की करीना कपूर के साथ कंपेयर किया जाने लगा है। आप क्या सोचती हैं?
'हाइवे' से भी पहले मेरी पहली फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' से ही मैं ये कंपेरिजन फेस कर रही हूं। क्योंकि 'स्टूडेंट...' की 'शनाया' और 'कभी खुशी कभी गम' की 'पू' दोनों फैशनीस्ता थीं और अब 'गीत' और 'वीरा' को भी कंपेयर किया जा रहा है। लेकिन मुझे पर्सनली नहीं लगता कि मैं उनकी बराबरी कर सकती हूं। न मैंने तब उनसे बराबरी की, न अब।

आपकी बहन पूजा को भट्ट कैंप ने लॉन्च किया था। रिलेटिव इमरान और मोहित सूरी को भी खूब मौके मिले। आप अपने घरेलू कैंप की कोई फिल्म नहीं कर रहीं। क्या वजह है?
(मजाकिया अंदाज में) क्या करूं, वे मुझे कोई फिल्म दे ही नहीं रहे। दूसरों को लॉन्च कर रहे हैं। उन्हें 100 करोड़ दे रहे हैं। मुझे कुछ नहीं दे रहे...। हालांकि मैं ये मानकर चल रही हूं कि वे मेरे लिए सही प्रॉजेक्ट का इंतजार कर रहे हैं। कम से कम मैं तो यही सोचकर अपने दिल को तसल्ली देती हूं(हंसती हैं)। लेकिन मैं श्योर हूं कि ऐसा जरूर होगा कि जब मैं अपने घरेलू प्रॉजेक्ट में दिखूंगी और जब ही यह होगा धमाकेदार होगा।

'रिश्ता...' पूरा होने का इंतजार कर रही हूं: हिना खान


Hina-Khan


 उपमा सिंह

टीवी ऐक्ट्रेसेस आमतौर पर एक ही सीरियल से ज्यादा दिन तक जुड़ी रहना पसंद नहीं करतीं, लेकिन अक्षरा, यानी हिना खान इस मामले में अपवाद हैं। इसी शो से करियर शुरू करने वालीं हिना अब भी इससे जुड़ी हैं। करते हैं उनसे खास बातचीत...

पांच साल से एक कैरक्टर करते-करते अजीब नहीं लगता?
लगता है, पर 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' मेरा पहला शो है। आज मैं जो कुछ भी हूं, 'रिश्ता...' की ही वजह से हूं। अगर लोग आज मुझे जानते हैं, प्यार देते हैं तो वह भी 'रिश्ता...' की ही वजह से है। इसलिए मैं 'रिश्ता...' नहीं छोड़ना चाहती। मैं आगे कोई और शो या असाइनमेंट तभी करूंगी, जब रिश्ता पूरा हो जाएगा।


लेकिन एक कैरक्टर में टाइपकास्ट होने का खतरा भी तो रहता है...
नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। मेरे हिसाब से अगर आप अच्छे ऐक्टर हैं, तो कोई भी रोल कर सकते हैं। एक रोल में टाइपकास्ट होने जैसी बात मुझे कभी परेशान नहीं करती। मुझे वाकई इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

फिक्शन शो तो आपने बहुत लंबे टाइम तक कर लिया। रिऐलिटी शो के बारे में क्या खयाल है?
मैं सच बताऊं तो मुझे हर तरह के रिऐलिटी शोज को ऑफर आए हुए हैं। सभी को मैंने इनकार कर दिया। ऐसा नहीं है कि मैं वह करना नहीं चाहती, लेकिन मैं एक समय में एक ही काम कर सकती हूं। फिलहाल मेरे लिए 'रिश्ता...' ही सब कुछ है। रिश्ता अपने पांच साल पूरे कर रहा है। यह किसी भी शो और उससे जुड़े कलाकारों के लिए फख्र की बात है कि लोगों ने हमें इतना प्यार दिया। एक बार 'रिश्ता...' पूरा हो जाए, फिर मैं भी सारे रिऐलिटी शोज करूंगी।

वैसे टीवी स्क्रीन पर आप मॉम बन चुकी हूं। फिर इधर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में भी शादियों का सीजन चल रहा है। आपका क्या प्लान है?
मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं, लेकिन शादी-वादी का अभी मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं इतनी जल्दी शादी नहीं करने वाली। फिलहाल स्क्रीन पर ही मॉम बनकर खुश हूं। इसे ही इंजॉय कर रही हूं।

और फिल्में?
फिल्में भी पाइपलाइन में हैं। बहुत से टीवी ऐक्टर फिल्मों में जा रहे हैं। मुझे भी फिल्मों से कोई परहेज नहीं है। कुछ ऑफर्स मिले भी, पर उन्हें भी नहीं किया। मैं बस 'रिश्ता...' पूरा होने का इंतजार कर रही हूं। उसके बाद जो अच्छा लगेगा, वह करूंगी।

दिल्ली न लौटना रहा टर्निंग पॉइंट: सिद्धार्थ मल्होत्रा




Sidharth Malhotra
सिद्धार्थ मल्होत्रा

उपमा सिंह

स्टूडेंट ऑफ द इयर, दिल्ली के हैंडसम हंक सिद्धार्थ मल्होत्रा अपना बर्थडे मनाने दिल्ली पहुंचे, तो की हमसे खास बातचीत और शेयर कीं दिल्ली की यादें...

हैपी बर्थडे सिद्धार्थ! कैसा रहा बर्थडे सेलिब्रेशन?
थैंक्यू, बर्थडे सेलिब्रेशन काफी अच्छा था। काफी सालों बाद मैं दिल्ली में था, तो कोशिश की कि ज्यादा समय अपनी फैमिली के साथ बिताया जाए, इसलिए अपने दोस्तों को बुलाया, कजिन्स को बुलाया। करीब 5 से 6 सालों बाद मैंने यहां घर पर अपना बर्थडे मनाया। वरना हमेशा ऐसा होता था कि मैं मुंबई में काम कर रहा होता था या शूटिंग के लिए ट्रैवल कर रहा होता था। इस बार भी काम के लिए यहां आया था, पर किस्मत से टाइमिंग ऐसी रही कि मैं अपना बर्थडे यहां मना पाया।


तो किसी तरह डिफरेंट था मुंबई से दिल्ली में बर्थडे सेलिब्रेशन?
वेरी डिफरेंट। एक अलग ही एक्साइटमेंट था, सब बहुत खुश थे। वैसे तो मेरी फैमिली अब भी मुझे वैसे ही घर के सबसे छोटे बेटे की तरह ही ट्रीट करती है। ऐसे नहीं कि मैं कोई बड़ा स्टार हो गया हूं। मेरी मां अब भी समझाती रहेंगी, ये ठीक नहीं है, तुम्हारे ये कपड़े ठीक नहीं हैं। यानी घर पर कोई स्टार ट्रीटमेंट नहीं मिलता, लेकिन ठीक ही है, इससे दिमाग ठिकाने रहता है। दिल्ली में फैमिली है, दोस्त हैं, तो अपनापन बहुत मिलता है। मुंबई में सिर्फ दोस्त हैं, फैमिली नहीं। फिर मुंबई में मैं होस्ट होता हूं, जबकि दिल्ली में बिंदास रहता हूं। मैं सबसे छोटा हूं घर में, तो खूब मस्ती कर सकता हूं।

खैर, घर के बाद आपकी आने वाली फिल्म की बात करते हैं। पहली फिल्म से कितना अलग रोल है?
काफी अलग है। 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' में मेरा कैरक्टर जहां बहुत फोकस्ड, बहुत कॉन्फिडेंट था, इस फिल्म में ऐंटि-हीरो टाइप है, टिपिकल हीरो नहीं है। काफी स्ट्रेस्ड रहता है। परेशान रहता है। उसे पता नहीं है कि वह क्या करेगा लाइफ में। फिल्म में उसे एक अमाउंट इकट्ठा करना है। सब पूछते रहते हैं कि वह अमाउंट हुआ या नहीं, लेकिन उसे पता नहीं है यह कैसे होगा। वह पूरी पिक्चर में कोशिश करता रहता है पैसे इकट्ठे करने की। यह सिर्फ दो लोगों की कहानी है, काफी इंटिमेट फिल्म है। मुंबई में शूट हुई है। 'स्टूडेंट...' की तरह इसमें लोकेशंस नहीं हैं, कॉस्ट्यूम नहीं हैं। आई ऐम श्योर, आपको इसमें 'स्टूडेंट...' की झलक नहीं दिखेगी।

परिणीति की बात करें, तो अपनी सभी फिल्मों में वह दूसरे कैरक्टर्स पर हावी हो जाती हैं। फिर आपकी एक फिल्म के मुकाबले वे तीन बार छा चुकी हैं, तो किसी तरह का चैलेंज फील किया?
देखिए, एक पिक्चर के बाद सब बराबर हो जाते हैं। फिर परिणीति और मैंने लगभग साथ-साथ काम शुरू किया था। फिल्म रिलीज का फर्क रह गया। 'इशकजादे' और 'स्टूडेंट...' एक ही टाइम पर शूट हुई थीं। रही परिणीति के कैरक्टर की बात, तो इस फिल्म में दो ही कैरक्टर्स की स्टोरी है। फिल्म में परिणीति मेंटल साइंटिस्ट का रोल प्ले कर रही हैं। वे थोड़ी टेढ़ी हैं। क्यों हैं, इसकी भी वजह है। मेरा किरदार भी बहुत सीधा नहीं है। यानी, हम दोनों ही थोड़े टेढ़े हैं। यह लड़का थोड़ा अजीब है, यह लड़की थोड़ी पागल है, तो फिल्म इसी पर बेस्ड है कि दो टेढ़े लोग कैसे साथ आते हैं। तो ऐसा कोई चैलेंज नहीं था। हम दोनों का कैरक्टर बराबर ही इंपॉर्टेंट है।

आपको लगता है, आजकल फिल्मस्टार बनना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है?
नॉट ऐट ऑल, ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमें भी अपने हिस्से का स्ट्रगल करना पड़ता है, बल्कि आज तो ज्यादा परफॉर्मेंस बेस्ड हो गया है। हम भी तमाम ऑडिशन प्रोसेस से गुजरे हैं। हमने पांच दिन ऑडिशन दिया था 'एसओटीवाई' के लिए। इसलिए मुझे नहीं लगता कि कुछ भी आसान हो गया है।

आपको किस तरह का स्ट्रगल फेस करना पड़ा यहां?
स्ट्रगल तो काफी किया। 22 की उम्र में मुंबई पहुंच गया था। 21 साल का था, जब दिल्ली में मॉडलिंग के दौरान एक फिल्म के ऑडिशन में सिलेक्ट हुआ था। बड़ी फिल्म थी। अनुभव सिन्हा डायरेक्टर थे। उन्होंने कहा मुंबई आ जाओ, तो लगा यार कुछ तो बात होगी। हालांकि वह फिल्म नहीं बनी। तब से दो साल कंफ्यूज रहा कि क्या करूं। बॉम्बे में रहूं या दिल्ली लौट जाऊं। घरवालों का भी प्रेशर था। दरअसल, मेरी फैमिली में सभी सर्विस बैकग्राउंड से हैं। पापा मर्चेंट नेवी में थे, दादा आर्मी में, बड़ा भाई बैंकर है। सभी 20 की उम्र से ही कमाने लगे थे। मैं ही अकेला ऐसा था, जो 22 की उम्र में मुंबई में था और कुछ पता नहीं था क्या होगा। घरवालों को भी नहीं लगा था ऐसे कोई ऐक्टर बन सकता है, इसलिए कहते थे कि लौट आओ, कहीं तुम अपना टाइम तो खराब नहीं कर रहे। तो वे काफी क्रूशल टाइम था। लेकिन दिल्ली न लौटना मेरे लिए टर्निंग पॉइंट था। तब मैंने तय किया था कि मैं ऑडिशन नहीं दूंगा, मॉडलिंग नहीं करूंगा। सेट पर जाऊंगा और असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर कुछ सीखूंगा। मेरा यह डिसिजन सही साबित हुआ। सेट पर मैंने वह सब सीखा जो लोग ऐक्टिंग स्कूल में सीखते हैं। उसका फल मुझे 4 साल बाद मिला।