Friday 24 January 2014

दिल्ली न लौटना रहा टर्निंग पॉइंट: सिद्धार्थ मल्होत्रा




Sidharth Malhotra
सिद्धार्थ मल्होत्रा

उपमा सिंह

स्टूडेंट ऑफ द इयर, दिल्ली के हैंडसम हंक सिद्धार्थ मल्होत्रा अपना बर्थडे मनाने दिल्ली पहुंचे, तो की हमसे खास बातचीत और शेयर कीं दिल्ली की यादें...

हैपी बर्थडे सिद्धार्थ! कैसा रहा बर्थडे सेलिब्रेशन?
थैंक्यू, बर्थडे सेलिब्रेशन काफी अच्छा था। काफी सालों बाद मैं दिल्ली में था, तो कोशिश की कि ज्यादा समय अपनी फैमिली के साथ बिताया जाए, इसलिए अपने दोस्तों को बुलाया, कजिन्स को बुलाया। करीब 5 से 6 सालों बाद मैंने यहां घर पर अपना बर्थडे मनाया। वरना हमेशा ऐसा होता था कि मैं मुंबई में काम कर रहा होता था या शूटिंग के लिए ट्रैवल कर रहा होता था। इस बार भी काम के लिए यहां आया था, पर किस्मत से टाइमिंग ऐसी रही कि मैं अपना बर्थडे यहां मना पाया।


तो किसी तरह डिफरेंट था मुंबई से दिल्ली में बर्थडे सेलिब्रेशन?
वेरी डिफरेंट। एक अलग ही एक्साइटमेंट था, सब बहुत खुश थे। वैसे तो मेरी फैमिली अब भी मुझे वैसे ही घर के सबसे छोटे बेटे की तरह ही ट्रीट करती है। ऐसे नहीं कि मैं कोई बड़ा स्टार हो गया हूं। मेरी मां अब भी समझाती रहेंगी, ये ठीक नहीं है, तुम्हारे ये कपड़े ठीक नहीं हैं। यानी घर पर कोई स्टार ट्रीटमेंट नहीं मिलता, लेकिन ठीक ही है, इससे दिमाग ठिकाने रहता है। दिल्ली में फैमिली है, दोस्त हैं, तो अपनापन बहुत मिलता है। मुंबई में सिर्फ दोस्त हैं, फैमिली नहीं। फिर मुंबई में मैं होस्ट होता हूं, जबकि दिल्ली में बिंदास रहता हूं। मैं सबसे छोटा हूं घर में, तो खूब मस्ती कर सकता हूं।

खैर, घर के बाद आपकी आने वाली फिल्म की बात करते हैं। पहली फिल्म से कितना अलग रोल है?
काफी अलग है। 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' में मेरा कैरक्टर जहां बहुत फोकस्ड, बहुत कॉन्फिडेंट था, इस फिल्म में ऐंटि-हीरो टाइप है, टिपिकल हीरो नहीं है। काफी स्ट्रेस्ड रहता है। परेशान रहता है। उसे पता नहीं है कि वह क्या करेगा लाइफ में। फिल्म में उसे एक अमाउंट इकट्ठा करना है। सब पूछते रहते हैं कि वह अमाउंट हुआ या नहीं, लेकिन उसे पता नहीं है यह कैसे होगा। वह पूरी पिक्चर में कोशिश करता रहता है पैसे इकट्ठे करने की। यह सिर्फ दो लोगों की कहानी है, काफी इंटिमेट फिल्म है। मुंबई में शूट हुई है। 'स्टूडेंट...' की तरह इसमें लोकेशंस नहीं हैं, कॉस्ट्यूम नहीं हैं। आई ऐम श्योर, आपको इसमें 'स्टूडेंट...' की झलक नहीं दिखेगी।

परिणीति की बात करें, तो अपनी सभी फिल्मों में वह दूसरे कैरक्टर्स पर हावी हो जाती हैं। फिर आपकी एक फिल्म के मुकाबले वे तीन बार छा चुकी हैं, तो किसी तरह का चैलेंज फील किया?
देखिए, एक पिक्चर के बाद सब बराबर हो जाते हैं। फिर परिणीति और मैंने लगभग साथ-साथ काम शुरू किया था। फिल्म रिलीज का फर्क रह गया। 'इशकजादे' और 'स्टूडेंट...' एक ही टाइम पर शूट हुई थीं। रही परिणीति के कैरक्टर की बात, तो इस फिल्म में दो ही कैरक्टर्स की स्टोरी है। फिल्म में परिणीति मेंटल साइंटिस्ट का रोल प्ले कर रही हैं। वे थोड़ी टेढ़ी हैं। क्यों हैं, इसकी भी वजह है। मेरा किरदार भी बहुत सीधा नहीं है। यानी, हम दोनों ही थोड़े टेढ़े हैं। यह लड़का थोड़ा अजीब है, यह लड़की थोड़ी पागल है, तो फिल्म इसी पर बेस्ड है कि दो टेढ़े लोग कैसे साथ आते हैं। तो ऐसा कोई चैलेंज नहीं था। हम दोनों का कैरक्टर बराबर ही इंपॉर्टेंट है।

आपको लगता है, आजकल फिल्मस्टार बनना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है?
नॉट ऐट ऑल, ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमें भी अपने हिस्से का स्ट्रगल करना पड़ता है, बल्कि आज तो ज्यादा परफॉर्मेंस बेस्ड हो गया है। हम भी तमाम ऑडिशन प्रोसेस से गुजरे हैं। हमने पांच दिन ऑडिशन दिया था 'एसओटीवाई' के लिए। इसलिए मुझे नहीं लगता कि कुछ भी आसान हो गया है।

आपको किस तरह का स्ट्रगल फेस करना पड़ा यहां?
स्ट्रगल तो काफी किया। 22 की उम्र में मुंबई पहुंच गया था। 21 साल का था, जब दिल्ली में मॉडलिंग के दौरान एक फिल्म के ऑडिशन में सिलेक्ट हुआ था। बड़ी फिल्म थी। अनुभव सिन्हा डायरेक्टर थे। उन्होंने कहा मुंबई आ जाओ, तो लगा यार कुछ तो बात होगी। हालांकि वह फिल्म नहीं बनी। तब से दो साल कंफ्यूज रहा कि क्या करूं। बॉम्बे में रहूं या दिल्ली लौट जाऊं। घरवालों का भी प्रेशर था। दरअसल, मेरी फैमिली में सभी सर्विस बैकग्राउंड से हैं। पापा मर्चेंट नेवी में थे, दादा आर्मी में, बड़ा भाई बैंकर है। सभी 20 की उम्र से ही कमाने लगे थे। मैं ही अकेला ऐसा था, जो 22 की उम्र में मुंबई में था और कुछ पता नहीं था क्या होगा। घरवालों को भी नहीं लगा था ऐसे कोई ऐक्टर बन सकता है, इसलिए कहते थे कि लौट आओ, कहीं तुम अपना टाइम तो खराब नहीं कर रहे। तो वे काफी क्रूशल टाइम था। लेकिन दिल्ली न लौटना मेरे लिए टर्निंग पॉइंट था। तब मैंने तय किया था कि मैं ऑडिशन नहीं दूंगा, मॉडलिंग नहीं करूंगा। सेट पर जाऊंगा और असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर कुछ सीखूंगा। मेरा यह डिसिजन सही साबित हुआ। सेट पर मैंने वह सब सीखा जो लोग ऐक्टिंग स्कूल में सीखते हैं। उसका फल मुझे 4 साल बाद मिला।

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