Monday 31 December 2012

एक इल्तिज़ा


(उसके नाम, जिसकी आँखों में ढेरों सपने थे, जो पूरे ना हो सके, वो जो जीना चाहती थी, पर जी ना सकी, क्योंकि वो एक लड़की थी  )
माँ,
मुझे अब गुडियों से नहीं खेलना
अबकी मेरे लिए भी बन्दूक ले आना
मत भेजना अब मुझे डांस क्लास
अब से मुझे भी कराटे सिखाना
मत कहना की मैं टीचर ही बनू
मुझे तो है फौज में जाना
मत देना अब शर्माने, लजाने की नसीहतें
क्योंकि मैं चाहती हूँ अब आवाज़ उठाना
माँ, मैं हूं तो तेरी बिटिया ही
पर प्लीज मुझे भैया सा ही बनाना
- उपमा सिंह

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