Tuesday 4 December 2012

लौट चलें

चलो
हम-तुम
लौट चलें फिर
उसी शहर की, उसी गली में
जहां से चले थे साथ
उसी जगह पर
जहां थामा था, एक-दूजे का हाथ

चलो
खो जाएं फिर
उन्हीं वादियों में
जहां थे, बस खुशियों के रंग
फिर बुनें वो सपने
जिनमें कुछ भी ना हो बेरंग

चलो
फिर चले
इक नई जि़ंदगी सजाने के वास्ते
पर अबकी छोड़ देना
वो मोड़
जहां जुदा हो जाते थे
मेरे-तुम्हारे रास्ते

-उपमा सिंह

2 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी कविताएं।
    कविताएं एक जगह उपलब्‍ध्‍ा करवाने के लिए शुक्रिया।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद नमिता जी ...
      आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हमेशा प्रोत्साहित करती है

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