Friday 23 November 2012

फ्लश आउट


मेरी जि़न्दगी की किताब के वो पन्ने
जिन पे लिखा था तुम्हारा नाम
ऊपर से नीचे
दायें से बायें
हर तरफ...

जिनमें जोड़ती थी
हर दिन, हर क्षण, कुछ नया
कुछ हंसना-खिलखिलाना
कुछ रूठना-मनाना
कुछ रोक-टोक, कुछ नोकझोंक...

अब वो पीले पड़ चले थे
कहीं-कहीं तो भूरे भी
जगह-जगह से कटे-फटे
चिथड़े जैसे...

इसलिए नोच डाला मैंने उन्हें
अपने इन्हीं हाथों से
जिनसे सहेजा था कभी
और भरे थे रंग
आज टुकड़े- टुकड़े कर
फ्लश आउट कर दिया
हमेशा के लिए...
- उपमा सिंह

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