मेरी जि़न्दगी की किताब के वो पन्ने
जिन पे लिखा था तुम्हारा नाम
ऊपर से नीचे
दायें से बायें
हर तरफ...
जिनमें जोड़ती थी
हर दिन, हर क्षण, कुछ नया
कुछ हंसना-खिलखिलाना
कुछ रूठना-मनाना
कुछ रोक-टोक, कुछ नोकझोंक...
अब वो पीले पड़ चले थे
कहीं-कहीं तो भूरे भी
जगह-जगह से कटे-फटे
चिथड़े जैसे...
इसलिए नोच डाला मैंने उन्हें
अपने इन्हीं हाथों से
जिनसे सहेजा था कभी
और भरे थे रंग
आज टुकड़े- टुकड़े कर
फ्लश आउट कर दिया
हमेशा के लिए...
- उपमा सिंह
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